कल कुछ ऐसे शेर सुने,
जो दिल को छूकर ठहर गए…
आज वही एहसास आप सबके साथ बाँट रही हूँ।
“गुल्लक तोड़ कर वापस गया तो
वो खिलौना और महँगा हो गया…
जिसकी परेशानी में हम नंगे पाँव दौड़े,
जब हमारी बारी आई… सबके घर बारिश आ गई।”
ज़िन्दगी की सच्चाई यही है—
जिनके लिये हम टूटकर भागते रहे,
जिनके आँसुओं में हमने अपनी नींदें तक गिरवी रख दीं,
उन्हीं की दुनिया में
हमारी ज़रूरत के दिन अक्सर सूखा मौसम मिलता है।
कभी-कभी हम बहुत देर से समझते हैं कि
लोग ग़ायब बुराई से नहीं होते,
बस हमारी अच्छाई उनके हिस्से की नहीं होती।