मोहब्बत के बदलते रंग
अब मोहब्बत को सादगी पसंद नहीं,
हर एहसास पर अब शोर चाहिए,
नज़रों में छुपा दर्द कोई समझे कहाँ,
आज तो रिश्तों को भी मंच और दौर चाहिए।
हुई मोहब्बत सरे आम, वो अब ख़तों में बंद नहीं,
इज़हार के लिए सोशल की दुनिया चाहिए,
दिल की धड़कनें जो कभी लफ्ज़ों में उतरती थीं,
अब उन्हें ताली और लाइक्स का सहारा चाहिए।
कभी परछाइयों में मिलना भी इबादत थी,
कभी एक ख़त पर सारी रात गुज़ार देते थे,
आज हर लम्हा तस्वीरों में कैद हो रहा,
और हम यादों के बजाए स्क्रीन पर निहारते हैं।
सच है, मोहब्बत बदली है ज़माने संग,
पर वो मासूमियत कहाँ, वो इंतज़ार कहाँ,
अब तो मोहब्बत भी सजधज कर चलती है,
दिल के दर्द को भी चाहिए "दर्शक" जहाँ।
DB-ARYMOULIK