मुझसे पहली मुहब्बत मेरे महबूब न माँग
मेंने समझा था कि तू है तो दरख्शाँ है हयात
तेरा ग़म है तो ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगडा क्या है?
तेरी सूरत से है आलम मैं बहारों को सबात
तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है?
तू जो मिल जाए तो तकदीर निगूँ हो जाए
यूँ नः था मेंने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने मे मुहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत की राहत के सिवा..
- फैज़ अहमद फैज़