"सफर-ए-वियोग"
दिल में कुछ अजनबी रोग लिए बैठी हूँ,
ज़िन्दगी में कुछ मतलबी लोग लिए बैठी हूँ।
वो संग-ए-दिल मेरी खुशियों का क़ातिल,
मैं हैरान उस पे सौ सोग लिए बैठी हूँ।
ना दर, ना दीद, और वो इश्क़-ए-ख़ुदा,
मैं किस बेवफ़ा का जोग लिए बैठी हूँ।
हर मोड़ पे छल, हर राह पे तन्हाई है,
मैं ज़ख़्मों का ही अनुरोग लिए बैठी हूँ।
वो छोड़ के मुझको गैरों का हो बैठा है,
मैं सफ़र-ए-इश्क़ में वियोग लिए बैठी हूँ।
"कीर्ति" क्या कहे कोई हाल-ए-दिल अपना,
मैं अरमानों का परितोग लिए बैठी हूँ।
Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️
संग-ए-दिल = कठोर-हृदय, निर्दयी, बेरहम,
सोग = दुख, शोक, या मातम
अनुरोग = प्रेम, मोहब्बत
परितोग = त्याग, अवसाद