मैं लिखने बैठी तो सारी कहानियाँ लिख दूंगी,
कुछ अनकही बातों कि निशानियाँ लिख दूंगी।
मैं लिख दूँगी अपनी इबादत तेरे लिए,
बदले में तेरी सारी बेईमानियाँ लिख दूँगी।
कैसे बेख़बर था तू मोहब्बत की राहों में,
तेरी की हुई सारी नादानियाँ लिख दूँगी।
कैसे गुज़ार दी मैंने इक उम्र इंतज़ार में,
बर्बाद की हुई अपनी जवाँनियाँ लिख दूँगी।
ग़मगीन रातों का आलम बताएगा जब,
मैं अपनी तन्हा सी रातानियाँ लिख दूँगी।
तेरे सितम से जो टूटा है दिल बार-बार,
ग़मों की अपनी सारी रवानियाँ लिख दूँगी।
गुमशुदा मुसाफ़िर सी भटकती रही दर-बदर,
तन्हाइयों में लिपटी जिंदगानियाँ लिख दूँगी।
अब "कीर्ति" भी कहेगी देखना दुनिया से,
मैं अपने ग़म की सब दास्तानियाँ लिख दूँगी।
Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️