कुछ और भी बहुत उसे इस जहाँ में,
अकेले हम उसके ख़याल में नहीं है..
बहुत सोचा मैं ने कि समझाऊँ उसे लेकिन,
सफ़र के पत्थर कि क़ीमत यहाँ नहीं है..
तक़ाज़े क्यू करू पहम ना साक़ी,
महोब्बत महोब्बत है सियासत नहीं है..
हर रोज बदलता है मिज़ाज़ उसका,
बदनाम ज़माने में हम भी कम नहीं है..
और गम-ए-ज़िन्दगी से यूँ तो नाता पुराना है मेरा,
बद-गुमानी उधर भी कुछ नहीं है..
अदब तो अभी तक है बातों में उसकी,
इधर सदाकत में अपनी हम भी कम नहीं है...