"इश्क़-ए-पुराना"
दर्द नहीं कुछ खुशियों का फ़साना लिख दूँ,
दो परिंदो का मोहब्बत भरा अफसाना लिख दूँ।
कितनी सादगी हुआ करती थी इश्क़ में पहले,
वो चिठ्ठीयों से इज़हार वाला ज़माना लिख दूँ।
मेरे इक दीदार को तरसती तेरी बेचैन निगाहें,
बात करने को बनाया जो हर बहाना लिख दूँ।
तेरी आवारगी पर मेरा यूँ मुस्कुरा जाना,
और तेरा मेरी गलियों में आना-जाना लिख दूँ।
दुनियां से छुप-छुप के कैसे मिलते थे हम-तुम,
अपनी मुलाक़ात का हर वो ठिकाना लिख दूँ।
एक तेरा ही नाम था शाम-ओ-सहर ज़हन में,
लबों पर तेरे ही नाम का तराना लिख दूँ।
वो गुलिस्तां, गुलो में रंग भरी हुई सी बहार,
और उससे भी नफ़ीस तेरा नज़राना लिख दूँ।
तेरी रूहानी मोहब्बत, मेरा बेशुमार जुनूँ,
तेरी बाहों को ही अपना आशियाना लिख दूँ।
तेरी यादों ने फिर आज क़लम को छू लिया,
तो "कीर्ति" ने सोचा वही इश्क़-ए-पुराना लिख दूँ।
Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️
नफ़ीस = सुन्दर