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पतझड़ जैसा जीवन है मेरा
पतझड़ जैसा जीवन है मेरा,
कभी इधर, कभी उधर भटकता।
न जाने कितने रंग की तरंगे,
हर पल बदलती, बिखरती रहतीं।
कभी हरे पत्तों-सा उम्मीदों से भरा,
तो कभी सूखी टहनियों-सा अकेला।
समय की आँधी जब मुझसे टकराती,
हर सपना जैसे टूटकर बिखर जाता।
यादों की झरती पत्तियाँ बतातीं,
कि हर खुशी स्थायी नहीं होती।
कल जो अपना था, आज पराया है,
जीवन की राहें अजनबी हो जातीं।
फिर भी हर पतझड़ में छिपा है,
एक नये वसंत का संदेश।
खोए हुए रंग लौट आते हैं,
नई कोंपलें फिर साँसें भरती हैं।
हाँ, जीवन बदलता रहता है,
हर दिन एक नया रूप धरता है।
कभी बुरा, कभी अच्छा लगता,
पर हर मोड़ पर सिखा जाता है।
पतझड़ जैसा जीवन है मेरा,
जिसमें बिखराव भी है, खिलाव भी है।
गिरने के बाद भी उठना सिखाता,
और उम्मीद की लौ जगाता रहता है।