जख़्मी दिल
टूटे ख्व़ाबों की राख में जलता,
ये दिल हर रोज़ नया दर्द सहता।
किसी ने चाहकर भी छोड़ दिया,
और किसी ने हंसकर मेरा दिल तोड़ दिया।
वफ़ाओं के साए अब अजनबी लगते हैं,
खुशियों के चेहरे भी पराये लगते हैं।
आँखों के आँसू सवाल पूछते हैं,
क्यों अपने ही दिल को ज़ख़्म देते हैं?
मुस्कान ओढ़े फिरता हूँ दुनिया के लिए,
पर भीतर का दर्द कोई देख न पाए।
हर धड़कन अब गवाही देती है,
प्यार में दिल फिर से जख़्मी होता है।