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भाग 10: प्रेम बंधन – अंजाना सा
दादी अक्सर अपने परपोते–परपोतियों के संग आँगन में बैठी उनकी खिलखिलाहट में अपने बुढ़ापे की ताजगी ढूंढ़ा करती थीं। शिव और राहुल दोनों ही अब सफल बिजनेस टायकून बन चुके थे। उनकी साझेदारी सिर्फ कंपनी तक सीमित नहीं थी, वो एक-दूसरे के लिए भाई जैसे थे।
रीना ने भी अपनी अलग पहचान बनाई थी। उसने कपड़ों के डिज़ाइनिंग का व्यवसाय शुरू किया था, जो अब एक प्रसिद्ध ब्रांड बन चुका था। वहीं गौरी, जो पहले से ही चंचल और रचनात्मक स्वभाव की थी, अब परिवार की सांस्कृतिक शक्ति बन चुकी थी — त्योहार, परंपराएं, और रिश्तों की गरिमा वही सँभालती थी।
समय बीतता गया, और पाँचों बच्चे अब बड़े हो चुके थे:
रेवाश – एक मेधावी वैज्ञानिक बना, जिसे शोध और इनोवेशन में गहरी रुचि थी।
मनीष – एक कड़क मगर ईमानदार IAS अफसर बन चुका था, जिसके फैसले में संवेदनशीलता भी झलकती थी।
रेवाशी – एक दार्शनिक बन गई थी, जो जीवन, आत्मा, और अस्तित्व पर गहरी बातें करती थी। उसकी लेखनी में एक अद्भुत गहराई थी।
अभय – एक नामी डॉक्टर था, जिसकी दयालुता ने उसे पूरे शहर में लोकप्रिय बना दिया था।
आध्या – एक तेज-तर्रार वकील बन चुकी थी, जो न्याय के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी।
अब जबकि परिवार के हर सदस्य ने अपनी-अपनी पहचान बना ली थी, 25 साल बाद, सब एक बार फिर पुराने घर में दादी के जन्मदिन पर एकत्र हुए। वो वही आँगन था जहाँ दादी कभी उन्हें कहानियाँ सुनाया करती थीं।
दादी की आँखों में आँसू थे, मगर वो आँसू दुख के नहीं, गर्व और प्रेम के थे।
उन्होंने सबको देखा और कहा,
"रिश्तों का बंधन कोई काग़ज़ की डोरी नहीं होता... ये तो वो भावना है, जो समय बीतने के साथ और भी मजबूत हो जाती है। तुम्हारे माँ-बाप ने रिश्तों को बनाया, तुम सबने उसे सँवारा, और अब इसे आगे ले जाना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।"
सबने सिर झुकाकर प्रण किया कि वो इस "प्रेम बंधन" को कभी टूटने नहीं देंगे।
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