"प्रेम बंधन - भाग 8: अनजाना सा"
---
भाग 8 — अनजाना सा
धीरे-धीरे दिन बीतते गए।
रेवाश अब चार साल का हो चुका था। सब उसके साथ बच्चे बन जाते—दादी, राहुल, शिव और सबसे ज्यादा रीना।
शिव अब अपने व्यापार पर ध्यान देता, लेकिन दिन का कुछ हिस्सा वह अपने बेटे के साथ बिताना कभी नहीं भूलता। वो रेवाश को देखकर अक्सर मुस्कुरा उठता—एक मासूम, चंचल झलक उसकी जिंदगी का सुकून बन गई थी।
रेवाश भी कम नहीं था, वह शिव जैसा शांत भी था और कभी-कभी उसी की तरह गुस्से वाला भी। लेकिन जब रीना उसके आसपास होती, तो वो बस उसी के पीछे-पीछे घूमता रहता—“मम्मा… मम्मा…” कहते हुए।
दादी तो अपने परपोते को देखकर फूली नहीं समातीं। वो अक्सर कहतीं, “इस घर में रौनक लौट आई है।”
राहुल कभी-कभी मज़ाक में रेवाश को चिढ़ाता—“ओ छोटे डेविल, क्या कर रहे हो?”
रेवाश तुरंत मुंह बनाकर कहता, “चाचू! आप हमें छोटा डेविल मत बोला कीजिए!”
रीना और शिव का प्रेम अब और भी गहरा हो चुका था। वो अब एक-दूसरे की भावनाओं को बिना कहे ही समझ लेते थे।
एक दिन अचानक रीना को चक्कर आया और वो बेहोश होकर गिर पड़ी।
शिव घबरा गया, “रीना! आपको क्या हुआ? आप ठीक हैं?”
रीना ने मुस्कराकर कहा, “कुछ नहीं, बस थोड़ा चक्कर आ गया।”
पर शिव ने बिना कुछ सुने उसे तुरंत अस्पताल ले जाया।
जाँच के बाद डॉक्टर ने मुस्कराते हुए कहा,
“मिस्टर शिव, बधाई हो… आपकी पत्नी फिर से माँ बनने वाली हैं। इस बार आपको इनका ख़ास ख्याल रखना होगा।”
शिव ने घबराकर पूछा, “कोई समस्या तो नहीं है डॉक्टर?”
डॉक्टर बोले, “नहीं… लेकिन इस बार जुड़वां बच्चे हैं।”
शिव एक पल को चौंक गया… फिर डॉक्टर से दोबारा पूछा, “कोई परेशानी तो नहीं है ना?”
डॉक्टर मुस्कुराकर बोले, “बिलकुल नहीं… आप इन्हें घर ले जा सकते हैं।”
घर पहुँचकर शिव ने सबसे पहले दादी और राहुल को यह खुशखबरी सुनाई। दोनों खुशी से झूम उठे।
तभी रेवाश भागता हुआ आया और मासूमियत से बोला—
“मम्मा! बेबी आने वाला है? मैं उनके साथ खेलूंगा!”
सभी की आंखों में अनजानी सी चमक थी… एक नया अध्याय खुलने को था।
--