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भाग 6 – प्रेम बंधन: अंजाना सा… (आखिरी हिस्सा)
अगले दिन जब शिव और रीना स्विट्ज़रलैंड से भारत लौटे, तो उनके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी। दोनों के बीच अब नज़दीकियाँ और आत्मीयता पूरी तरह से बन चुकी थीं। जैसे ही वे घर पहुँचे, दादी माँ ने उन्हें गले से लगा लिया।
"आ गए मेरे बच्चे? बहुत याद आई तुम दोनों की," दादी ने मुस्कुराते हुए कहा।
रीना ने दादी के पाँव छुए और शिव ने हँसते हुए कहा, "दादी, अब तो हम पूरी तरह पति-पत्नी बन चुके हैं।"
दादी माँ की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। उन्होंने घर के मंदिर में पूजा रखवाई और पूरे परिवार को आमंत्रित किया। घर एक बार फिर सजाया गया — इस बार सिर्फ बहू के स्वागत के लिए नहीं, बल्कि दो आत्माओं के मिलन के लिए।
शिव अब ऑफिस कम जाने लगा था और ज़्यादातर समय रीना के साथ बिताने की कोशिश करता। वो दोनों साथ में खाना बनाते, फिल्में देखते और छोटी-छोटी बातों में भी खुशियाँ ढूंढते।
एक दिन रीना ने धीरे से शिव से कहा,
"शिव, मुझे तुमसे कुछ कहना है…"
"बोलो न," शिव ने प्यार से उसके हाथ थामते हुए कहा।
रीना मुस्कुरा कर बोली,
"शिव, मैं माँ बनने वाली हूँ…"
शिव एक पल के लिए स्तब्ध रह गया, फिर अचानक उसकी आँखें भर आईं। उसने रीना को गले से लगा लिया।
"यह मेरी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत पल है रीना।"
पूरा घर खुशियों से गूंज उठा। दादी माँ ने फिर से पूजा रखवाई और भगवान का धन्यवाद किया। अब यह परिवार एक नई शुरुआत की ओर बढ़ रहा था — जहाँ सिर्फ प्रेम, समझदारी और अपनापन था।
रीना और शिव की यह प्रेम कहानी अब एक नए अध्याय में प्रवेश कर चुकी थी — ममता और जिम्मेदारी के साथ।
"रिश्तों का बंधन" अब सिर्फ एक नाम नहीं था, वो एक भाव बन चुका था — जो दिलों को जोड़ता है, जो हर मोड़ पर साथ देता है, और जो हर अंजान रिश्ते को भी अपना बना लेरूप में व्यवस्थित करूँ?