(एक भीगी सी मोहब्बत)
भीगी ज़मीं पर जब वो पहला क़दम रखा,
बारिश ने भी जैसे तेरा नाम पढ़ा।
बूँदों ने छूकर तेरी खुशबू चुराई,
हवा ने तेरे ख्वाबों की चादर बिछाई।
भीगती थी तू — ज़ुल्फ़ें चुराती हवा से,
मैं नज़रों से लिख रहा था कुछ दुआ से।
तेरे होंठों पे वो भीगी-सी मुस्कान थी,
और मेरे दिल में तूफ़ानी कोई जान थी।
एक छतरी थी — और हम दोनों क़रीब,
बोलते कम थे, पर थी हर बात अजीब।
तेरा कांपना, मेरा थाम लेना हाथ,
बारिश भी थम गई देखकर वो साथ।
बूँदें गिरती रहीं — मगर वक़्त ठहर गया,
तेरी आँखों में मेरा अक्स उतर गया।
इस भीगी दोपहर ने इतना सिखा दिया,
कि इश्क़ भी बारिश सा, सब भिगो जाता है सिया।
– तुम्हारी ‘काजल’ की यादों में भीगी कविता