Hindi Quote in Poem by Ved Prakash Tyagi

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लेट लतीफ़ II:-
मेरे बोस के बोस थे बड़े ही सिंसियर,
ठीक समय पर दफ्तर, सही समय पर जाते घर
लेकिन मेरे बोस थोड़ी सी देर से आते
थोड़ी देर की आधी, हम भी पचा जाते
एक दिन हमने प्रण किया, हम भी समय से जाएंगे
थोड़ी सी देरी के लिए, झाड़ नही हम खाएंगे
सुबह सुबह घर से निकल पड़े साढ़े सात
पत्नी ने रोका व टोका, क्या हो गई बात
एक घंटा पहले आज कहां जाओगे
क्या किसी कलमुंही को पार्क में बुलाओगे
ऐसा है तो आज मैं भी साथ चलूंगी
तुम्हारे साथ उस चुड़ैल का भी मुंह नोच लूंगी
मैंने बतलाया व समझाया दे उदाहरण
समय से दफ्तर जाने का लिया है हमने प्रण
दफ्तर हम पहुंचे तो बज गए थे नो
लेकिन चोकिदार अभी तक रहा था सो
हमने उसे जगाया और समय बताया
पर वो नींद में ही कुछ ऐसा बड़बड़ाया
ऐ बाबू क्या आज घर से लड़ आया है
खुद ही भाग आया या घरवाली ने भगाया है
मैंने उसे उठा कर समझाया दफ्तरी कानून
वो पूछने लगा, बाबू ये कैसा चढ़ा तुम्हें जुनून
अभी तुम जाओ बाबू दस बजे आना
सफाई यहां की करवाकर मुझे घर है जाना
बैंच पर मैं बैठ गया वहीं दफ्तर के बाहर
समय बिताने के लिए पढ़ने लगा अखबार
अखबार पढ़ते पढ़ते आंख लग गई व सो गया
आंख खुली तो देखा सबआ गए मैं लेट हो गया
चुप रह गया मैं सोचकर, ऐसा अपना फेट
शायद अपनी तकदीर में है जाना दफ्तर लेट ।।

Hindi Poem by Ved Prakash Tyagi : 111981144
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