अंतराल
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लंबे अंतराल के बाद
जब तुम आई,
तो दरवाज़ा नहीं
समय खुला।
दीवारों ने पहचानने में
थोड़ा वक़्त लिया,
कमरे की हवा
अभी भी तुम्हारा इंतज़ार करती थी।
तुम आई,
पर वो हँसी
अब पहले जैसी नहीं थी —
शब्द कम, मौन अधिक था।
चाय उबल रही थी,
पर चूल्हे की आग
अब उतनी गर्म नहीं थी।
कुछ बदला नहीं,
फिर भी सब कुछ
बदल चुका था।
लंबे अंतराल के बाद
तुम आई हो —
या शायद
सिर्फ
तुम्हारी परछाईं।
-पवन कुमार शुक्ल