गुनिया धन है पा गया, बुधिया रहा गरीब।
शिक्षा का मतलब सही, पाएँ बड़ा नसीब।।
मंजिल रहती सामने, चलने भर की देर।
बैठ गया थक-हार कर, पहुँचा वही अबेर।।
भटक रहा मानव बड़ा, ज्ञानी मन मुस्काय।
ईश्वर का तू ध्यान कर, फिर आगे बढ़ जाय।।
दगाबाज फितरत रहे, मत करिए विश्वास।
सावधान उससे रहें, जब तक चलती श्वास।।
उलझन बढ़ती जा रही, सुलझाएगा कौन।
जिनको हम अपना कहें, क्यों हो जाते मौन।।
उमर गुजरती जा रही, व्यर्थ करे है सोच ।
चलो गुजारें शेष अब, हट जाएगी मोच।।
जितना तुझसे बन सके, करता जा शुभ काम।
ऊपर वाला लिख रहा, पाप पुण्य अविराम।।
सुप्त ऊर्जा खिल उठे, जाग्रत रखो विवेक।।
सही दिशा में बढ़ चलो, राह मिलेगी नेक।।
मन-संतोष न पा सका, बैठा पैर पसार।
लालच में उलझा रहा, मिला सदा बस खार।।
उठो सबेरे घूमने, रोग न फटके पास।
स्वस्थ रहेंगी इन्द्रियाँ, मन मत रखो उदास।।
मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*