क्या हमारा अतीत हमें वास्तव में डरा पाता है या हम उसके बाद भी अतीत दोहराते रहते हैं। जबकि अतीत की कलम में वर्तमान की स्याही भर यदि हम भविष्य के पन्नों पर अपनी रचना रच पाए तो ही जीवन का वास्तविक अर्थ तथा प्रयोजन सिद्ध हो सकता है। परन्तु इस बात का भी ध्यान रखे कि हमारी स्याही में मानवता और प्रकृति का लोप न हो। चूंकि कलम से लिखते समय संभवतः हमारे हाथ पर भी स्याही के दाग बनते हैं। तो सोचना हमें है कि हमें कैसा भविष्य सृजित करना है। ऐसा जहां केवल हमारा ही लाभ हो तथा जिसके प्रभाव में अन्य की हानि हो अथवा एक ऐसा भविष्य जो चिर काल तक समस्त घटकों को प्रभावित करे तथा ये सुनिश्चित हो कि इसमें किसी की हानि न हुई हो। फिर वह शारीरिक आर्थिक सामाजिक मानसिक व वाचिक किसी रूप में स्वीकार्य नहीं होगी।