।। स्त्री।।
स्त्री याने किसी को भी ना समझ में आने वाली,
कभी खामोश तो कभी , बहुत बड़बड़ाने वाली।
कभी माता पिता की राजकुमारी,
मायके में कभी काम ना करने वाली।
दहलीज पार करते ही, जवाबदारी संभालने वाली।
मायके में कभी कभी बगैर कारण से रुठ जाने वाली।
ससुराल में तीर जैसे शब्द भी सहन करने वाली।
मां बाप से बोलते हुए, मुस्कुराहट में आंसु छुपाने वाली
बीमारी में भी उठ कर काम करने वाली,
खाना बनाते हुए चटके लग जाने पर भी सहने वाली।
रिश्ते नाते सभी संभाल ने वाली,
फिर भी वो पराए घर की ही कहलाने वाली।
उसे भी चाहिए, पति का ऐसा साथ,जो उसे समझने वाला हो।
तन मन के ज़ख्मों को धीरे से फूंक मारकर सहला ने वाला हो।
पर उसकी व्यथा किसी को भी नहीं समझ आने वाली।
स्त्री याने किसी को भी ना समझ आने वाली पहेली है।