जिस प्रकार अंगद ने रावण के पास जाकर अपने स्वामी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चन्द्र के संधि का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था , ठीक वैसे हीं भगवान श्रीकृष्ण भी महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले कौरव कुमार दुर्योधन के पास पांडवों की तरफ से शांति प्रस्ताव लेकर गए थे। एक दूत के रूप में अंगद और श्रीकृष्ण की भूमिका एक सी हीं प्रतीत होती है । परन्तु वस्तुत: श्रीकृष्ण और अंगद के व्यक्तित्व में जमीन और आसमान का फर्क है । श्रीराम और अंगद के बीच तो अधिपति और प्रतिनिधि का सम्बन्ध था । अंगद तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के संदेशवाहक मात्र थे । परन्तु महाभारत के परिप्रेक्ष्य में श्रीकृष्ण पांडवों के सखा , गुरु , स्वामी , पथ प्रदर्शक आदि सबकुछ थे । किस तरह का व्यक्तित्व दुर्योधन को समझाने हेतु प्रस्तुत हुआ था , इसके लिए कृष्ण के चरित्र और लीलाओं का वर्णन समीचीन होगा । कविता के इस भाग में कृष्ण का अवतरण और बाल सुलभ लीलाओं का वर्णन किया गया है । प्रस्तुत है दीर्घ कविता "दुर्योधन कब मिट पाया" का चतुर्थ भाग। #Poetry #Hindi_Kavita #Duryodhana #Mahabharata #Krishna #Ravana #Govardhan #Kanha #Shyam #Angad #कविता #दुर्योधन #महाभारत #धर्मयुद्ध #श्रीकृष्ण #कान्हा #गोपी #गोवर्धन #अंगद