मैं कौन हूँ?
जब भी खुद से पूछती हूँ —
मैं कौन हूँ?
तो उत्तर बाहर से नहीं आता,
वह मेरे अंतर में पहले से बैठा होता है।
मैं तो बस साक्षीभूत हूँ —
न क्रिया,
न कर्म,
न भक्ति,
न करने की दौड़।
हाँ,
मैंने कर्म किए हैं,
इच्छाएँ भी बनाई हैं,
पर यह मेरी क्रिया नहीं है।
ये क्रियाएँ
इस देह में,
इस तन-मन में घटती हैं।
मैं तो
इन सब के माध्यम से
सीखने वाली हूँ।
मैं देखती हूँ
कैसे इच्छा उठती है,
कैसे कर्म होता है,
और कैसे सब बीत जाता है।
लोग कहते हैं
आत्मा को शांति चाहिए,
पर मेरी आत्मा कहती है —
मुझे शांति नहीं,
मुझे अनुभव चाहिए।
अनुभव
कर्म का भी,
भ्रम का भी,
मौन का भी।
शिव योगी
गोरखनाथ जी ने
मुझे इस सत्य से
परिचित कराया —
कि करने वाला देह है,
और देखने वाला मैं।
इस अर्थ में
मैं शिव हूँ,
मैं गोरक्ष हूँ —
न उनसे अलग,
न उनकी होकर।
मैं केवल वही हूँ
जो सदा था,
जो अभी है,
जो बस
देख रहा है।
by: pinklotus❣️🌸
om shiv gorksh❣️🙏