जंगल मत काटो
जहाँ मिटाना है तो जंगलों को काट दो,
क्या सच में इतनी सस्ती है ये धरती,
और ये साँसें भी बाँट दो?
पेड़ खड़े थे चुपचाप हजारों बरसों से,
छाँव में रखते थे हमें अपने हौसलों से,
हमने ही उनके दिल पर कुल्हाड़ी चला दी,
लूट ली धरा की हँसी कुछ लालचों के फ़सलों से।
जहाँ मिटाना है तो नदियों को सुखा दो,
पर याद रखना
सूखी धरा पर आँसू भी उग नहीं पाएँगे,
न कोई गीत, न कोई जीवन लौट आएगा।
आज अगर जंगल काट दोगे,
कल हवा भी साथ छोड़ देगी,
धूप जलेगी चुभती धधकान-सी,
धरती राख की चादर ओढ़ लेगी।
समय है संभल जाओ मानव,
जंगल नहीं,
अपने भीतर के अँधेरों को काटो।
पेड़ बचेंगे तो कल भी साँसें बचेंगी,
वरना ये जीवन पथरीले सन्नाटों में बिखर जाएगा।
आर्यमौलिक