बचपन में साइकिल सीखने का इतना जुनून होता था कि साइकिल पर ठीक से पैर तक नहीं पहुँचते थे तो भी ‘कैंचीमार’ साइकिल चलाते हुए गाँव की गलियों में सैर करते थे । जब बचपन में कभी नहीं डरे तो भला बड़े होने पर नया काम सीखने में कैसा डर ?
उषा जरवाल ‘एक उन्मुक्त पंछी’