अदृश्य क़त्ल (अदृश्य हत्या)
दो तरह की होती है हत्या,
एक तन की, एक मन की।
तन की हत्या, सबको दिखती,
मन की हत्या, गुमशुम रहती।
कोई आहट नहीं, न कोई गवाह,
बस भीतर ही होता है एक अनजाना तबाह।
पहला क़त्ल जिस्म को ख़त्म कर जाए,
दूजा क़त्ल जीते जी आत्मा को मार जाए।
आमतौर पर क़त्ल के गवाह नहीं होते,
खासकर जब क़त्ल ये मन का होता है।
दुनिया देखती है, जब तन का अंत हो,
पर मन का क़त्ल कोई देखता नहीं।
ये घाव है गहरा, ये सिलसिला है कड़वा,
ये बार-बार होता है, जैसे हो ये रस्म।
इस दर्द को कोई रोकने वाला नहीं,
बस सिसकियाँ चलती हैं, जैसे हो मौसम।
DHAMAk (એક ત્રણ લીટી ના વાક્ય પરથી
પ્રેરિત થઈને)