"पुराने ख़यालात की"
मुझे नहीं गवारा तूने क्यों रक़ीब से हँसकर बात की,
बेशक नई-सी लड़की हूँ, मगर हूँ पुराने ख़यालात की।
तेरी नज़रों में बस अपना ही अक्स देखना चाहती हूँ,
मुझको तलब है बस तेरी मोहब्बत की, न सौग़ात की।
वफ़ा की राह पे चलना है तो मुश्किलें सहनी होंगी,
ये इश्क़ किताब है साहब, लिखी हुई इम्तिहानात की।
हसीन चेहरे तो हर महफ़िल में अक्सर मिल जाते हैं,
पर कीमत वही होती है जो हो दुआओं-नियाज़ात की।
तुझे ही सोच के गुज़री हैं मेरी रातों की तन्हाइयाँ,
तू ही है राहत मेरी, न ज़रूरत किसी नजात की।
"कीर्ति" लिखते हुए मैंने ये राज़-ए-दिल बयान कर दिया,
अब तेरे हवाले है ये ग़ज़ल, दास्तान मेरी जज़्बात की।
Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️
रक़ीब = प्रेमी की दूसरी प्रेमिका/प्रतिद्वंद्वी/प्रतिस्पर्धी।
सौगात = उपहार, तोहफा
इम्तिहानात = इम्तेहान, परीक्षा
दुआओं-नियाज़ात = दिल से की गई सारी प्रार्थनाएँ/मोहब्बत भरी इल्तिज़ाएँ।
नजात = मुक्ति, छुटकारा