ख़्वार हूँ मैं मगर, न कोई मुझे ग़मख़्वार चाहिए,
मुझे नहीं किसी का ख़ुद पर इख़्तियार चाहिए।
मेरे हिस्से सदा आईं तल्ख़ सदा-ए-शिकायतें,
अब आरज़ू-ए-हयात है कि बस करार चाहिए।
Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️
ख़्वार = तबाह, बेइज़्ज़त, बदहाल, परेशान
गमख़्वार = दुख हरने वाला, हमदर्द
इख़्तियार = अधिकार, नियंत्रण
तल्ख़ = कड़वी, कष्टदायक
सदा-ए-शिकायतें = शिकायतों की आवाज़ें, तानों-भरी बातें
आरज़ू-ए-हयात = ज़िन्दगी की तमन्ना