दोहा मुक्तक
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आजादी
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आजादी का पर्व हम, मना रहे हैं आज।
हर भारतवासी करे, गर्व तिरंगा साज।।
चाह रहे हैं हम सभी, उन्नति पथ पर देश,
दुनिया में एक दिवस हो, अपना भारत राज।।
आजादी के पर्व का, करो सभी सम्मान।
भेद-भाव की आड़ में, करो नहीं अभिमान।।
जाने कितने कुर्बान हुए, तब आजादी आई,
राष्ट्र माथ ऊँचा करें, ये ही बड़ा गुमान।।
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विविध
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मुक्तक लिखना आज है, नहीं आपको याद।
रखते इतनी आस क्यों, लिखें सिफारिश बाद।।
भ्रम का आप शिकार हो, बनते बड़ा विशेष,
देते क्या तुम मंच को, दाना, पानी, खाद।।
क्यों लगता है मित्रवर, बड़े श्रेष्ठ हो आप।
ज्ञानी बनकर कर रहे, आखिर इतना पाप।।
समय चक्र के फेर में, जिस दिन आये नंमित्र,
घन घमंड जो आज है, बने यही अभिशाप।।
अब बिकते सम्मान भी, गली-गली में आज।
कुछ लोगों के पास है, यही आज बस काज।।
भले नहीं वो कर सकें, उच्चारण भी शुद्ध,
ऐसे लोगों को लगे, आया उनका राज।।
हम तो इतना व्यस्त हैं, भूले भूख अरु प्यास।
राम भरोसे चल रहा, नहीं किसी से आस।।
सबसे ज्यादा खास हैं, हमीं शहर में आज,
ईर्ष्या करते लोग जो, लगता है मम रास।।
माफ़ मुझे कर दीजिए, भूलें मेरा गुनाह।
नाहक अपने शीश पर, लेते मेरी आह।।
व्यर्थ उलझने से भला, क्या पाओगे मित्र,
होना केवल वही है, जो मेरी है चाह।।
धोखा देने से भला, पाए क्या हो आप।
केवल अपने शीश पर, चढ़ा लिया है पाप।।
रोने का क्या फायदा, अब सब है बेकार,
आगे ऐसा हो नहीं, यही है पश्चाताप।।
ज्ञानी जो भी लोग हैं, उनसे लीजै ज्ञान।
ऐसा हो सकता तभी, बने रहो नादान।।
शीश झुका कर शरण में, उनके रहिए आप,
इतना निश्चित मान लो, बढ़ जायेगा मान।।
खुद पर यदि विश्वास हो, तभी मिलेगी राह।
बिन इसके बेकार है, मन की कोई चाह।।
निंदा नफरत से सदा, मंजिल जाती दूर,
बरबादी को जन्म दे, मिले किसी की आह।।
सुधीर श्रीवास्तव