हास्य व्यंंग्य - यमलोक व्यापी अभियान
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आज अलख सुबह मित्र यमराज आये
जाने क्यों थे बड़े मुरझाए,
मैंने उसे प्यार से बैठाया
खुद दो कप चाय बनाकर लाया
इज्जत से ट्रेन में नमकीन के साथ लेकर आया,
यमराज उठा और मेरे हाथों से ट्रे लेते हुए कहने लगा -
आप भी न प्रभु! नाहक परेशान हो जाते हैं
इतनेलाड़ प्यार से रुला देते हैं,
अब बैठिए, आप भी चाय पीजिए
साथ ही यह तो बताइए कि आपका भविष्य क्या है?
मैं चौंक गया - यह कैसा सवाल है?
फिर मेरे भविष्य की तुझे इतनी चिंता क्यों है ?
यमराज अकड़ गया - यह मेरे सवाल का जवाब नहीं है।
बस! मुझे तेरे बुढ़ापे की चिंता है
इसलिए कि तू बेटियों का बाप है,
लगता है यह तेरे लिए बड़ा अभिशाप है।
मुझे गुस्सा आ गया - अब तू चाय पी
और चुपचाप मेरे घर से निकल जा।
यमराज बिल्कुल नहीं हड़बड़ाया चाय पीते हुए बोला - यार! तू नाहक अपना बीपी बढ़ा रहा है,
मेरे कहने का आशय समझ ही नहीं रहा है।
मैं तो बस इसलिए परेशान हूँ
कि कल जब तू बेटियों के हाथ पीले कर विदा कर देगा,
तबका सोचा है कि तुम दोनों को क्या होगा?
कौन तुम्हारी देखभाल करेगा और ध्यान रखेगा?
फिर कल को तुम दोनों में कोई एक
इस दुनिया से विदा हो गया,
तब दूसरा अकेले कैसे रहेगा?
किसके भरोसे जियेगा या फिर किसके साथ रहेगा?
मैं गंभीर हो गया - फिर मुस्कराया
तेरी चिंता थोड़ी जायज थोड़ी नाजायज है,
आजकी बेटियां बेटों से कम नहीं हैं,
वैसे भी बेटियों के लिए माँ बाप सबसे करीब होते हैं,
आज की बेटियों बेटों जैसी हो गई हैं,
हर काम बेझिझक हौसले से कर रही हैं
रुढ़ियों को तोड़ माँ -बाप का दाह-संस्कार भी कर रही हैं।
फिर तू ही बता! बेटों में कौन सा सुर्खाव के पर लगे हैं।
अब आज का समय बहुत बदल गया है यार
यह हम सबको समझने की जरूरत है,
आज के कितने बेटे बुढ़ापे में माँ-बाप को
उचित मान-सम्मान संग महत्व देते हैं?
उनके स्वाभिमान को तार-तार नहीं करते हैं?
अपनी सीमा में रहकर मर्यादित व्यवहार करते हैं?
खून के आँसू नहीं रुलाते हैं?
जीते जी मौत के मुँह में नहीं ढकेलते हैं?
क्योंकि अब वे बच्चे नहीं
बड़े कमासुत और समझदार हो गये हैं,
जिन्हें अपने बुजुर्ग माँ- बाप बोझ जैसे लग रहे हैं
ऐसा दिखाने का स्वांग रच रहे हैं
कि अब अपने माता-पिता ही सबसे बड़े दुश्मन हो गये हैं।
बेटियां हैं तो कम से कम इतना संतोष तो है
बुढ़ापे में बेटे-बहू को कोसने से तो फुर्सत है।
उम्मीदों के टूटने का कोई डर तो नहीं है,
जीते जी मरने का अफसोस का दंश नहीं सहना है
अंतिम संस्कार के लिए कम से कम
बेटे के इंतजार में नहीं सड़ना हैं।
फिर तू तो है न? आखिर तू क्या करेगा?
क्या यारी के नाम पर सिर्फ स्वार्थ के गीत ही गायेगा?
और हमें आसानी से भूल जाएगा?
क्या तू भी कल हमारे काम नहीं आयेगा?
वैसे तू नहीं चाहेगा तो भी हम दोनों यमलोक आ जायेंगें।
वहीं तेरे घर में धूनी रमायेंगे,
तेरा ही खाकर जमकर हुड़दंग मचाएंगे,
तेरे सवालों का जवाब पाने के लिए
यमलोक व्यापी अभियान चलाएंगे,
सरेआम चर्चा कराएंगे
अपने मित्र यमराज के जयकारे लगाएंगे,
दोनों मिलकर एक नया इतिहास बनायेंगे।
सुधीर श्रीवास्तव