बड़ी लकीर बनाना है
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लालकिले से मोदी जी का भाषण सुनकर
मित्र यमराज सीधे मेरे पास आये,
कम से एक किलो लड्डू की डिमांड के साथ
उन्यासीवें स्वतंत्रता दिवस की बधाइयां दी
और फिर कहने लगे - प्रभु,
मोदी जी का संदेश नहीं सुना तो हमसे सुनिए
और आप भी उस पर अमल करिए।
इतना ही नहीं अपनी लेखनी से
साहित्यिक धर्म के साथ राष्ट्र धर्म का भी निर्वाह करिए।
मैंने कहा - अरे यार! सीधे मुद्दे पर आ
बेवजह होशियारी का गाना मत गा।
मोदी जी ने क्या कहा- सीधे-सीधे ये बता
या फिर चुपचाप लापता हो जा।
यमराज कहने लगा- आज मोदी जी ने कहा
कि किसी की छोटी लकीर पर ध्यान मत दीजिए
अच्छा है अपनी लकीर को बड़ा करने का काम कीजिए,
बस! अब आप मुझे इसका मतलब समझा दीजिए,
क्या पता यमलोक में भी किसी काम आ जाए,
कुछ लोगों को नया रोजगार मिल जाए।
मैंने उसे समझाया - मोदी जी का आशय
एकदम साफ-सुथरा है,
जिसे हम सबको ईमानदारी से जीवन में उतारना है
किसी की लकीर छोटी करने के चक्कर में
अपनी उर्जा नाहक व्यर्थ नहीं करना है,
बस! अपनी लकीर बड़ी करने पर ध्यान देना है,
किसकी लकीर कितनी छोटी या बड़ी है
यह सोचना हमारा काम नहीं है।
हमें तो बस इस पर ध्यान लगाना है
कि अपनी लकीर कैसे बड़ी,
और बड़ी औ...औ...र बड़ी बनाना है,
छोटी-बड़ी के चक्कर में समय नहीं गँवाना है,
समाज, राष्ट्र के हितार्थ अपने को खपाना है।
ये नये जमाने का भारत है,
दोस्त हो दुश्मन, सबको यही दिखाना है,
तिरंगे की ताकत का लोहा मनवाना है।
इसके लिए हर एक भारतवासी को
बिना थके, बिना रुके बस चलते और चलते जाना है
भारत को विश्व गुरु बनाने में
हर किसी को अपनी-अपनी भूमिका निभाना
और अपनी लकीर को बड़ी और बड़ी करते जाना है,
भारत को दुनिया का चमकदार आइना बनाना है।
सुधीर श्रीवास्तव