रक्षाबंधन का यमराज उपहार
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आज दोपहर बाद मित्र यमराज आये,
समझ नहीं आया! क्यों थे मुँह लटकाए,
मैंने कारण पूछा - तो भावुक हो गए
और खुद को संयत करते हुए कहने लगे
प्रभु जी! आप तो रक्षाबंधन पर्व मना रहे हो
मेरी पीड़ा को समझ ही नहीं पा रहे हो।
मैंने कहा -चल भाई! मैं नासमझ हूँ, तो तू ही समझा दे
अपने मुँह लटकाने का कारण समझा दे।
यमराज निवेदन करते हुए बोला -
प्रभु! मैं भी रक्षाबंधन पर्व मनाना चाहता हूँ
अपनी कलाई पर बहन की राखी सजाना चाहता हूँ।
पर अफसोस कोई भी बहन इसके लिए तैयार नहीं है,
अनुनय विनय के बाद भी डरकर छिप जा रही है,
मुझे अपना भाई कहने तक में झिझक रही है।
अब आप ही कुछ उपाय करो
मेरे मन के भावों को साकार करो।
मैंने हँसते हुए कहा - बस इतनी सी बात है
तो मैं तत्काल तुझे इसका हल देता हूँ,
अपनी छुट्टकी से तुझे अभी राखी बँधवा देता हूँ,
अपनी जिम्मेदारी भी तेरे साथ बाँट लेता हूँ।
यमराज मुस्कराया - सच प्रभु! ऐसा हो सकता है?
मैंने कहा - हो सकता नहीं होने जा रहा है
तू हाथ तो बढ़ा, तुझ पर भी
बहन की राखी का क़र्ज़ चढ़ने जा रहा है।
छुटकी ने आग्नेय नेत्रों से मुझे घूरते हुए कहा -
क्या आपका क़र्ज़ हो गया पूरा?
मैं भाई यमराज को राखी बाँधती हूँ
आपकी तरह उनका भी लाड़-प्यार चाहती हूँ
आज से ये भी मेरा भाई है
दुनिया देख ले, अब उसकी भी सूनी नहीं कलाई है।
मेरे लिए तो ये बड़े गर्व की बात है
कि भाई यमराज और आप पहले से यार हैं,
इस वर्ष के रक्षाबंधन पर्व का
ये मेरे लिए सबसे अनमोल उपहार है।
सुधीर श्रीवास्तव