"मुझे तुझसे न कोई बात चाहिए,
न ही कोई मुलाकात चाहिए,
बस दे दे एक तस्वीर अपनी,
तेरी झलक भर की सौगात चाहिए।
नसीब में नहीं तू, ये जानता हूँ मैं,
फिर भी दिल तुझको ही चाहता हूँ मैं।
तू कहती है तस्वीर भी नहीं दूँगी,
क्यों इतना भी हक़ नहीं मुझे तू देती?
देख न सही, तेरी सूरत को छू न सही,
कम से कम आंखों को तसल्ली तो दे सही।
तू सामने नहीं, ये मजबूरी है मेरी,
पर तेरा इंकार… ये तो ज़़ुल्मी ज़रूरी है क्या?"