मर्द बड़ी प्यारी चीज़ है
चुप रहता है, मगर दिल में तूफान दबाये रखता है,
हर दर्द को, हँसी में छुपाए रखता है।
न शिकवा करता, न करता है वो शोर,
हर रिश्ते की खातिर देता है जोर।
कंधों पे बोझ भी हो, तो झुकता नहीं,
घर हो या बाहर, कभी रुकता नहीं।
पलकों में सपने, सीने में आग,
कमज़ोरियाँ भी हों, फिर भी रहता है जाग।
न रोता खुलकर, न माँगता सहारा,
फिर भी यही बनता है सबका किनारा।
हर हार में भी ढूंढे उम्मीद की रौशनी,
मर्द है — मगर उसमें भी होती है थोड़ी नमी।
ना तो पत्थर है, ना तो भगवान
है वो भी इंसान, बस थोड़ा थका, थोड़ा परेशान।
तो जब कहो "मर्द को दर्द नहीं होता",
थोड़ा पास बैठो — देखो कैसे है ये झूठ टूटता।
क्योंकि मर्द भी रोता है, पर कह नहीं पाता,
उसके भी कुछ सपने हैं, जिनको शायद जी नहीं पाता।
मर्द बड़ी प्यारी चीज़ है,
अगर समझो — तो एक किताब सा
जिसका हर पन्ना नया, सच्चा और थोड़ा खास सा।
_नैना