"अब मैं चल पड़ा हूँ..."
अब मैं चल पड़ा हूँ,
उस रास्ते पर
जहाँ लौटने की कोई वजह नहीं बची।
तुम एक पन्ना थीं
जो पढ़ा भी गया,
और फाड़कर छोड़ भी दिया गया।
मैंने तुम्हें समझा,
तुम्हारे मौन को भी
तुमने मुझे बाँधना चाहा
इशारों में, अहंकार में,
और उस नकली लगाव में
जिसका कोई नाम नहीं होता।
लेकिन अब मैंने खुद को मुक्त किया है।
अब न शिकवा है,
न सवाल।
सिर्फ़ एक शांत विदाई है,
बिना शोर के,
बिना पछतावे के।
तुम्हें तुम्हारे जीवन के लिए शुभकामनाएँ
मैं अब अपने पथ पर हूँ,
जहाँ सिर्फ़ शांति है,
सम्मान है,
और सच्चे रिश्तों की जगह।
अब तुम पीछे
मेरे किसी भी मोड़ पर नहीं हो।
-पवन कुमार शुक्ल