आपकी यहकहानी "प्रेम बंधन: अंजाना सा" के में एक बहुत ही नाटकी मोड़ पर चुकी है। आपने जो लिखा है, उसमें प्रेम, धोखा, रहस् और सामाजिक रस्मों का अच्छा मिश्रण है। मैं आपकी कहानी को थोड़ा व्यवस्थित और भावनात्मक रूप देकर आगे बढ़ा रहा हूँ ताकि यह एक स्पष्ट और प्रभावशाली अध्याय बन :
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भाग 5 — प्रेम बंधन: अंजाना सा
शिव अब भी विचारों में डूबा हुआ था। पिछले कुछ दिनों से उसके मन में उठ रहे सवाल उसे चैन नहीं लेने दे रहे थे। वह समझ नहीं पा रहा था कि जो हो रहा है, वह सही है या नहीं। कुछ देर तक ऐसे ही खोया रहने के बाद उसने खुद को संभाला और मीटिंग में जाने के लिए निकल पड़ा।
उधर, रीना की शादी की तैयारियाँ पूरे जोर-शोर से चल रही थीं। घर में रौनक ही रौनक थी। हर कोना फूलों और रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया गया था। रिश्तेदारों का आना-जाना लगा हुआ था। सब उत्साहित थे।
फेरों का समय नजदीक आ चुका था। बारात आने ही वाली थी और हर कोई स्वागत की तैयारी में जुटा था।
थोड़ी ही देर में बारात धूमधाम से पहुँची। सबने नाच-गाना किया, मिठाइयाँ बांटी गईं और खाने-पीने का दौर चला। फिर जयमाल की रस्म हुई। रीना और दूल्हे ने एक-दूसरे को माला पहनाई। उसके बाद दोनों को मंडप में बैठाया गया।
पंडित जी ने वैदिक मंत्रों के साथ शादी की रस्में शुरू कीं। फेरों के बाद जब दूल्हे ने सिंदूर भरकर रीना को पत्नी के रूप में स्वीकार किया, तो पंडित बोले,
"अब ये विवाह संपूर्ण हुआ। आप दोनों बड़े-बुज़ुर्गों का आशीर्वाद लें।"
जैसे ही दूल्हा अपने माता-पिता के पैर छूने के लिए झुका, उसका सेहरा गिर गया।
भीड़ में सन्नाटा छा गया।
सबकी आँखें फटी की फटी रह गईं। सामने जो लड़का खड़ा था, वो असली दूल्हा नहीं था!
लड़के वाले चौंककर बोले, "ये कौन है? हमारा बेटा कहाँ है?"
तभी दूर से एक लड़का लड़खड़ाता हुआ दौड़ता हुआ आया और बोला,
"रुकिए! ये शादी झूठी है! मुझे किसी ने अगवा कर लिया था!"
सब दंग रह गए। पंडित, बाराती, घरवाले – कोई कुछ समझ नहीं पा रहा था।
पर रीना के पिता ने दृढ़ता से कहा,
"जब सब रस्में पूरी हो चुकी हैं, सिंदूर भर गया है, तो ये शादी झूठी कैसे हो सकती है?"
लड़के के माता-पिता गुस्से में बोले,
"हम अपने बेटे की शादी इससे नहीं होने देंगे! हम इसके लिए और भी सुंदर लड़की खोजेंगे!"
और वे वहाँ से चले गए।
अब सबका ध्यान उस नकली दूल्हे की ओर गया। धीरे-धीरे उसका चेहरा साफ़ हुआ – वो और कोई नहीं, शिव था!
शिव ने सबके सामने कबूल किया,
"मैंने ही असली दूल्हे को रास्ते से उठवा लिया था। क्योंकि मैं रीना से सच्चा प्रेम करता हूँ। मैं उसे किसी और का होते नहीं देख सकता था।"
सब लोग चुप हो गए। रीना की आँखों में आँसू थे, पर अब उनमें दुख नहीं, कोई और गहराई थी।
काफी विचार-विमर्श और भावनात्मक क्षणों के बाद, दोनों परिवारों ने आपसी सहमति से शिव और रीना की विदाई की तैयारी कर दी।