"आज एक मंज़र देखा, बचपन याद आ गया,
खिलखिलाते वो दिन, मासूम सा वक़्त याद आ गया।
ना कोई फिक्र थी, ना कोई मजबूरी,
मिट्टी में खेलना, बारिश में भीगना, बस इतनी थी ज़रूरी।
आज बड़े हो गए हैं हम, सपनों के पीछे भागते,
पर वो मासूम सी हँसी, अब तस्वीरों में ही बसते।
काश फिर से लौट आए वो गली के मोड़,
जहां खुशियाँ थी मुफ्त, और ग़मों का ना था कोई जोड़।
दिल भारी है आज, आँखें भीग सी गईं,
बस किसी मासूम पल ने, फिर से बच्चा बना दिया कहीं। 😭**