कड़ुआ लग सकता है किन्तु सच है। बहु कभी बेटी नही बन सकती वह कर्तव्य मे बेटी से कहीं अधिक हो सकती है किन्तु अधिकार मे केवल बहु। हाँ प्रिय भी हो सकती है लेकिन बेटी नही। हर रिश्ता स्वयं मे पूर्ण है किसी रिश्ते को किसी दूसरे रिश्ते से तुलना करने का अर्थ पहले रिश्ते को निम्नतर समझना। यह सोच अपेक्षा उपेक्षा से उत्पन्न हुई है।
- Ruchi Dixit