एक दिन खोल कर बैठी जो जिंदगी की किताब
लगे शिकायतें करने, अधूरी ख्वाहिशों के पन्ने एक साथ।
इन पीले धुंधले यादों के पन्नों ने बड़े बुजुर्ग सा समझाया
सबके लिए बहुत किया, कुछ अब अपने बारे में सोच ।
दिखने लगी बालों में सफेदी और धुंधली पड़ने लगी आंख
उम्र फिसल रही रेत सी और शरीर भी हो रहा निढाल ।
थोड़ा ठहर! समय दो खुद को, क्यों करती इतनी भागम भाग
जिम्मेदारियां तो मरते दम तक यूं ही लगी रहेगी साथ।
लेकिन दुनिया से जाने से पहले, जी लो जिंदगी खुलकर एक बार।
ना रहे मन में कोई ख्वाहिश अधूरी ना रहे कोई मलाल
जब जुदा हो जिंदगी से,तब खूबसूरत यादों के
साए जाएं साथ।
सरोज ✍️
- Saroj Prajapati