कैद हूँ मैं !!
कैद हूँ मैं खुद में ऐसे,
की ये खुला आसमाँ भी
पिंजरा लगता है।
कैद हूँ मैं खुद में ऐसे,
की हर अपना बेगाना
लगता है।
चाहत ऐसी की उड़ चलूँ
कहीं दूर ऐसी वादियों में जहाँ,
ये कैद रोक न पाए मुझे ,
पर अब ये उड़ान भी
सपना - सा लगता है।
मन की कोरी चादर पर जड़े थे
ख्वाबों के कई सतरंगी सितारे मैंने।
पर अब हर सितारा उजड़ा-सा लगता है।।
खुद को खुद में तलाशते थक गया है
ये हृदय इतना कि,
अब ये तलाश भी अधूरा ही लगता है।।
सारी उम्मीदें, सारे सपने, सारी चाहते
टटोल लिए हैं मैंने,
पर अब वो “मैं"बनकर जीना कल्पना
मात्र ही लगता है।।
~स्वीटी