सुनहरी सड़कें:
झूठे वादों और भ्रष्ट सपनों का प्रतीक नैतिक मूल्यों का व्यापारीकरण।
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सुनहरी सड़कों पे जब ख़्वाबों की बुनियाद रखी,
जाहिर ओ बातिन इश्क, बीमारी बेहियाद चखी।
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हर रिश्वत पे इक भरोसे का कत्ल हो जाता है,
जर्राद बताकिद उजाला अंधेरों में खो जाता है।
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सु ए तू दलालों की बातें अब राज़ नहीं रहीं,
सियासत के गलियों में अब शराफ़त नहीं रही।
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पा ए दिलाशा सिसकते लोग सड़कों के किनारे,
वो गवाही हैं उस तंत्र के, जो खा गया सारे।
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इमां बिकते हैं खल्क ए दो जहॉं खुले बाज़ारों में,
नीयत डूबती है बंदा ए परवर चमकते इशारों में।
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उम्मीदें थमती हैं सजदा उॅंचा, हर ठंडी फाइल में,
इंसाफ़ गुम है तंजीम ए सब, सरकारी स्टाइल में।
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हस्ती ए दिल कहीं नोट की गड्डियाँ बोलती हैं अब,
सच्चाई की चीखें दर्द ए मोहबत यॉं झोलती हैं सब।
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ये सच है कि साजी ए हुस्न सपने अभी जिंदा हैं,
हिन्दू ए तू सौदा ईमान की बंदिशों में पाबंदा हैं।
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दर ए जुल्म कोई दीप जल रहा है अंधेरे में कहीं,
और कहता है कदा “मैं ही हूं सवेरे की लकीर।
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हल्कं आवाज़ बननी है उस सिसकती पीड़ा की,
जो खो गई है चुप्पी में सत्ता की चीत्कारों की।
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हमें लड़ना है कल के लिए, आज के जख़्मों से,
बच्चों की आँखों में ना हो डर की परछाइयाँं से।
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आशिक ए दीवान जो कुर्सियों पे बैठ मुस्कराते हैं,
जाहिर ये वक़्त बदलने पर रौशनी से घबराते हैं।
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मेहर ए रूखत ख़ामोशी उनका हथियार बन गई,
जादू ए आलम सत्ता की दीवार हिल जाए कई।
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पा ए दिलासा दस्तूर ए चादरें अब पुरानी हो चुकीं,
अहलाव की हवा से वो सब उखड़ जाय गो युही।
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सीधे या भोले बहर जुर्म पे चुप्पी नहीं, जवाब चाहिए,
बे-खता फूंक के हर सवाल का अब हिसाब चाहिए।
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कयामत ए जालिम ये मुल्क किसी की जागीर नहीं,
मैं हूॅं ये मंजिल यहाँ हर दिल की तस्वीर है यकी।
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पांव के छाले है अधिकारों की पहचान या गमगीन,
जो मिटाई नहीं जा सकती किसी भी आदेश किन्ह।
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मिजाज ए हकी हम वादें से नहीं, वफ़ाओं से बंधे दीह,
रूह ए हमः खूबा गर नींव अब सच्चाई पे ये जमीह।
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हकीकी आजादी सच के लिए खड़े ते अब है अकेले,
कर्देम ए नजर गरे फुर्र कल बनेंगे इंकलाब के मेले।
******* JUGAL KISHORE SHARMA, BIKANER
सुनहरी: स्वर्णिम, सोने जैसी
बुनियाद: नींव
जाहिर: प्रकट, स्पष्ट
बातिन: अंदरूनी, गुप्त
बेहियाद: असीम, अनंत
रिश्वत: घूस
कत्ल: हत्या
जर्राद: कण, छोटे टुकड़े
बताकिद: निश्चित, पक्का
दलालों: बिचौलियों, दलाल
सियासत: राजनीति
शराफत: इमानदारी
दिलाशा: सांत्वना
तंत्र: व्यवस्था
इमां: विश्वास, ईमान
खल्क: सृष्टि, लोग
नीयत: इरादा
इंसाफ़: न्याय
तंजीम: संगठन
हस्ती: अस्तित्व
साजी ए हुस्न: सुंदरता के खेल
पाबंदा: बंधे हुए
जुल्म: अत्याचार
कदा: कब
मेहर ए रूख़्त: मौन की मुहर
दस्तूर: रीति, प्रथा
अहलाव: नए विचारों की हवा
बे-खता: बिना गलती के
कयामत: प्रलय, अंत
मिजाज: स्वभाव
वफ़ाओं: वादों का पालन
इंकलाब: क्रांति
रूपकों और प्रतीकों के माध्यम से समाज की विसंगतियों को उजागर किया है: सामाजिक-राजनीतिक भ्रष्टाचार, नैतिक पतन, और सत्ता के दमन के विरुद्ध एक तीखा प्रतिकार है।
Let them ignite the fire of vichāra (self-inquiry) until even the question “Who am I?” burns to ash, and what remains is the inarticulate, irreducible suchness of being—सत्यं, शिवं, सुन्दरम् (Truth, Consciousness, Bliss). The dawn is here. The mind’s night is an illusion. Awaken