हम लड़ना जानते हैं
हम लड़ना जानते हैं
धरती से, पेड़ों से,
पहाड़ों से, पर्यावरण से,
नदों से, नदियों से।
युद्ध करना जानते हैं
अच्छे विचारों से,
सभ्यताओं से, सभ्यों से,
संस्कृतियों की परतों से ।
मल्लयुद्ध करते हैं
अन्दर की आत्मा से,
सत्य के प्रश्नों से,
सौन्दर्य की सरलता से ।
हम स्वभाव से आतंक फैला,
बुद्ध को जड़ बनाते हैं।
हमारी क्रान्तियों में,
ठहराव है, बिखराव है।
हम झगड़ना जानते हैं,
एक डर के साथ
एक महाभारत चाहते हैं,
जहाँ धर्म भी हो, अधर्म भी हो।
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** महेश रौतेला
२०१५