फागुन के दिन आ गये......
फागुन के दिन आ गये, मन में उठे तरंग।
हँसी-ठहा के गूँजते, नगर गाँव हुड़दंग ।।
कि होली आई है, रंगों को लाई है ।।
बसंती ऋतु छाई, सभी के मन-भाई
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।
अरहर झूमे खेत में, पहन आम सिरमौर।
मधुमासी मस्ती लिये, नाचे मन का मोर।
गाँव की किस्मत चमकी, घरों में खुशियाँ दमकीं।
ये बालें पक आईं, खेत में लहराईं
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।
जंगल में टेसू खिले, प्रकृति करे शृंगार।
चम्पा महके बाग में, गाँव शहर गुलजार।।
वो कोयल कूक रही है, मधुरिमा घोल रही है।
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।
प्रेम रंग में डूब कर, कृष्ण बजावें चंग ।
राधा पिचकारी लिये, डाल रही है रंग।।
कृष्ण-राधे की जोड़ी, खेलती बृज में होली
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।
लट्ठ मार होली हुई, लड्डू की बौछार।
रंग डालते प्यार से, पहनाएं गल-हार।।
नाचती रसिया टोली, करें मिल हँसी ठिठोली।।
यही मथुरा की होली, यही वृज की है होली।।
दाऊ पहने झूमरो, झूमें मस्त मलंग।
होरी गा-गा झूमते, टिमकी और मृदंग।।
ग्वाले सब घर हैं जाते, नाच गा धूम मचाते।
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।
महिलाओं की टोलियाँ, हम जोली के संग।
बैर बुराई भूलकर, खेल रहीं हैं रंग ।।
यही संस्कृती हमारी, रही दुनिया से न्यारी
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।
फाग-ईसुरी गा रहे, गाँव शहर के लोग।
बासंति पुरवाई में, मिटें दिलों के रोग।।
चलो जी हँसलो भाई, भुला दो सभी लड़ाई।
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।
जीवन में हर रंग का, अपना है सुरताल ।
पर होली में रंग सब, मिलें गले हर साल ।।
सहिष्णुता हमें लुभाई, सभी हम भाई भाई
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।
दहन करें मिल होलिका, मन के जलें मलाल ।
गले मिलें हम प्रेम से, घर-घर उड़े गुलाल ।।
कि एकता हर्षाई, प्रगति की डगर दिखाई
सुनो प्रिय श्रोता भाई,बजाओ मिलकर ताली
ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।
मनोज कुमार शुक्ल 'मनोज'