कुमार विश्वास जी की जुबानी आज मैंने जाना कि चाय भी चरित्रवान और चरित्रहीन हो सकती है ।
जो चाय चीनी मिट्टी के प्याले (कप) में परोसी जाती है, न जाने कितने ही लोगों ने उस प्याले को अपने अधरों से छूते हुए उस चाय की चुस्कियों का आनंद लिया होगा । हर बार वह प्याला नहा - धोकर, सज - सँवर कर एक नए चाय - प्रेमी के हाथों में पहुँच जाता है और उसके अधरों से छूकर उसे आनंदित करता है ।
दूसरी और जो चाय मिट्टी के कुल्हड़ में परोसी जाती है वह केवल एक बार एक ही चाय - प्रेमी के अधरों से छूकर उसे आनंद देकर तृप्त कर देता है । वह कुल्हड़ उस चाय में अपनी सौंधी - सी सुगंध ऐसी मिला देता है कि वह प्रेमी भुलाए नहीं भूलता । मिट्टी से जन्म लेकर एक बार जिस चाय - प्रेमी के अधरों से लग जाता है तो फिर ऐसा समर्पित हो जाता है कि किसी दूसरे प्रेमी के अधरों को छूने की अपेक्षा मिट्टी में ही मिल जाना पसंद करता है ।
किसी भी बर्तन में परोसी जाने वाली चाय ‘चरित्रहीन चाय’ हुई और मिट्टी के कुल्हड़ में परोसी जाने वाली चाय ‘चरित्रवान चाय’ हुई ।