जीना अभी शेष है
उगा सूरज छिपा बहुत है,
शहर ये धुआं-धुआं
आदमी कहाँ-कहाँ !
जो कहा गया सुना नहीं
मनुज पूर्ण दिखा नहीं,
फूल में सुगन्ध है
छिपा सूरज उगा तो है।
पाप-पुण्य लिखे गये
भीड़ को दिखे नहीं,
अँधकार में दीपक जला है
बुझा प्रकाश जला तो है।
*** महेश रौतेला