पहाड़:
नित संघर्ष को लपेटे हुये
बर्फ से ढके हुये,
शिखर सब उठे हुये
हमें पुकारते हुये।
मुकुट इनको कहा
सौन्दर्य इनका पिया,
जगे-जगे,झुके नहीं
प्यार को सिले-सिले।
पीठ यों झुकी हुई
ये उत्तुंग बने हुये,
शीत से जुड़े हुये
नियति पर चढ़े हुये।
जब जहाँ खुल गये
हृदय अपना रख गये,
ये अटल हो गये
हम देखते रह गये।
शुद्ध-विशुद्ध निवास है
रास्ते मुड़े-मुड़े,
संघर्ष में अटे-पटे
संग में घने-घने।
*** महेश रौतेला