बड़ी अजीब बात है कि,
हम जो सोचते हैं वो कर नहीं पाते और जो हमारे साथ होता है वो शायद हम सोच भी नहीं सकते, हमारे हाथ में केवल आज होता है पर इस आज पर बीते हुए कल की परछाई और आने वाले कल की आहट भी होती है। कहने को हम आज में जीते हैं पर वास्तव में हम मात्र बीते हुए कल को छिटक कर आने वाले कल के लिए प्रयत्न करते रहते हैं और जो कि हमारे हाथ में नहीं है कि हम उसे अपने अनुरूप आकर दे कर उसे संजोए रख सके। क्योंकि सच है कुम्हार मटके को कितना ही ऐतबार से नवाजे और तराश कर बनाए पर जब मटका गिरता है तो वह सामान्य मटके की तरह ही चूर चूर होता है। जीवन भी कुछ ऐसा ही है हम अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं के साये में न जाने क्या क्या कर जाते हैं पर जब विपदा आती है तो निश्चित ही क्रूरता से विनाश करती है। जैसे भूकंप या सुनामी नहीं देखते कि हमारी चपेट में बच्चे और महिलाएं है,अथवा वे अल्पसंख्यक है या पिछड़े हैं,क्योंकि आपदाओं में आरक्षण नहीं मिलता वहां तो समानता ही मिलती है।
- Lalit Kishor Aka Shitiz