कुम्भ:
प्रखर इस आस्था में
मनुष्य ही मनुष्य है,
कुम्भ के अमृत में
अमरता का बीज है।
प्रखर यह आस्था है
जल में मोक्ष है,
मनुष्य के पड़ाव का
यह प्रखर पवित्र स्थल है।
जल में अटे-अटे
पुण्य का विचार है,
देव के स्वरूप में
संगम में वास है।
साधुता में बँधे- बँधे
सन्तों का आलोक है,
जल की तरंग में
आस्था का पर्व है।
जल जो बह गया
वह भी तार गया,
अजस्र इस जल में
पुण्य ही प्रधान है।
यह निखरने का दिन है
कुम्भ पर विश्वास है,
पूर्वजों के कृत्य में
दिव्य- मोक्ष का विधान है।
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*** महेश रौतेला