हे कृष्ण हमारा क्या है रिश्ता !
कर्म बनूँ तो क्या है रिश्ता,
धर्म बनूँ तो क्या है रिश्ता
ज्ञान बनूँ तो क्या है रिश्ता
तप बनूँ तो क्या है रिश्ता,
शासक हूँ तो क्या है रिश्ता
शासित हूँ तो क्या है रिश्ता,
जन्म लूँ तो क्या है रिश्ता
मृत्यु रहूँ तो क्या है रिश्ता।
सोचूँ तो क्या है रिश्ता
न सोचूँ तो क्या है रिश्ता,
हे कृष्ण हमारा क्या है रिश्ता !
* महेश रौतेला