मैंने सोचा अमृत बरसेगा
गरीबी हटेगी,
संशय मिटेगा
टूटा जुड़ेगा
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
मैंने सोचा बीमारी कम होगी
बाघ बकरी नहीं मारेगा,
हरियाली बढ़ेगी
जलस्तर बढ़ेगा
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
मैंने सोचा हवा शुद्ध होगी
सुगंध बढ़ेगी,
घुटन कम होगी
विषवमन कम रहेगा
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
इन सबके बीच मैंने सोचा
स्नेह रहेगा
हाँ और नहीं के बीच समय कटेगा
मधुमास आयेगा
मरने के बाद स्वर्ग दिखेगा।
** महेश रौतेला