लुट गई बस्तियाँ, जब्त हुए नग़मे
लुट गई बस्तियाँ, जब्त हुए नग़मे,
खामोश हैं अब वो गलियाँ, जहाँ गूंजते थे तराने।
हर कोने में बिखरी है उदासी की धूल,
ख्वाबों की चादर पर अब नहीं कोई फूल।
वो हँसी, वो खुशी, सब खो गए कहीं,
अब तो बस यादें ही रह गईं यहीं।
आओ, मिलकर फिर से बसाएँ ये बस्तियाँ,
फिर से गूंजें नग़मे, फिर से खिलें खुशियाँ।
उम्मीद की किरण से भर दें हर दिल,
फिर से जिएं वो पल, जो थे कभी हसीन।
आओ, मिलकर फिर से सजाएँ ये बस्तियाँ,
फिर से गूंजें नग़मे, फिर से खिलें खुशियाँ।