बचपन की मोहब्बत
वो बचपन की मोहब्बत, वो मासूम से जज़्बात,
ना कोई डर, ना फ़िक्र, बस दिल के साथ।
ना ख़त लिखे गए, ना वादे किए गए,
फिर भी आँखों से दिलों तक सिलसिले हुए।
गुलाबी वो एहसास, पहली नज़र का जादू,
खेल-खेल में कह दी बातें, वो अल्फ़ाज़ों का जालू।
कभी किताबों के पन्नों में ख़ुशबू छुपाई,
तो कभी बारिश में संग-साथ पल बिताई।
मोहब्बत थी सच्ची, पर समझ ना आई,
दिल ने हँसते-हँसते सौ कहानियाँ बनाई।
वो हाथ थामने की चाहत, वो नज़रें झुकाना,
एक-दूसरे के लिए ही हर बहाना बनाना।
अब जब सोचूँ तो होंठों पर मुस्कान आती है,
वो बचपन की मोहब्बत, दिल को बहलाती है।
ना चाहा कुछ, बस पल वो क़ीमती थे,
बचपन की मोहब्बत में, दिल के रुतबे ऊँचे थे।