दर्द उसे भी होता है , बस बता नहीं सकता।
समंदर है, अपनी सीमा लांघ नहीं सकता।।
रोना हो तो , अंदर अंदर ही डूब जाता हैं।
मर्द है आंसु की नुमाइश नहीं कर सकता ।।
हल्की सी मुस्कुराहट उसे पिघला देती हैं।
लेकिन अपना दुख किसीसे बाट नहीं सकता।।
पता हैं खुदा को , उसे सुकून की जरूरत होगी।
पर हर जगह वो अपनी जगह बना नहीं सकता ।।
पत्नी को इसलिए ही दूसरी मां कहा रब ने ।
एक ही मा से वो जिंदगी बीता नहीं सकता।।
टूटना चाहता है , चूर चूर होना चाहता हैं।
हर पल्लू में वो अपना सर छुपा नहीं सकता।।